स्थान: मुगलसराय जंक्शन
समय: रात 2:15 बजे
रात का सन्नाटा छाया हुआ था। मुगलसराय जंक्शन का प्लेटफॉर्म नंबर 4 हमेशा से थोड़ा अलग लगता था, जैसे यहाँ पर कुछ अजीब सा था। जो लोग दिन में यहाँ से गुजरते, वे इस प्लेटफॉर्म की खामोशी और रहस्यमय वातावरण को महसूस करते थे। लेकिन रात के अंधेरे में ये प्लेटफॉर्म और भी डरावना लगने लगता था।
रेलवे कर्मचारी रवि अपनी चौथी शिफ्ट में काम कर रहा था। वह थका हुआ था, लेकिन एक मालगाड़ी के गुजरने का इंतजार कर रहा था। तभी अचानक एक आवाज आई, "रवि..."
रवि ने चौक कर पीछे मुड़कर देखा, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। उस वक्त उसे लगा कि शायद थकावट के कारण वह गलती से सुन रहा है। लेकिन अगले ही पल उसकी नजर प्लेटफॉर्म के एक कोने पर पड़ी। एक बूढ़ी औरत धीरे-धीरे प्लेटफॉर्म पर चढ़ रही थी। उसके कपड़े गीले थे और बाल बिखरे हुए थे। ये दृश्य बिल्कुल असामान्य था क्योंकि बाहर तो मौसम साफ था और बारिश नहीं हो रही थी।
रवि ने डरते हुए पूछा, "माँजी, इतनी रात को क्या कर रही हैं यहाँ?"
औरत ने धीरे-धीरे अपनी आँखें उठाईं, और रवि की रूह काँप गई। उसकी आँखें पूरी काली थीं, जैसे उसमें कोई भी सफेदी न हो। उसने जैसे ही अपनी आवाज़ में कहा, "मैं वही हूँ, जो उस ट्रेन के इंतजार में हूं… जो 40 साल पहले इस प्लेटफॉर्म पर पलटी थी।"
रवि ने शॉक में आकर औरत से पूछा, "क्या आप… मतलब आप…"
औरत ने एक लम्बी साँस ली और बोला, "मैं उसी ट्रेन में सवार थी… जब वो पलटी थी। मैं वही यात्री हूँ, जो मर चुकी थी। मुझे अब भी इस प्लेटफॉर्म पर आकर उस ट्रेन का इंतजार करना पड़ता है।"
इतना कहकर, वह औरत हवा में विलीन हो गई। रवि हिलता हुआ प्लेटफॉर्म की ओर बढ़ा और देखा कि उस जगह पर कुछ नहीं था। बस एक ठंडी सी हवा चल रही थी।
अगले दिन रवि ने इस घटना के बारे में अपने साथी कर्मचारियों से बात की, तो पता चला कि इस प्लेटफॉर्म पर पहले भी कई लोगों ने अजीब घटनाएँ देखी थीं। एक पुराना किवदंती थी कि प्लेटफॉर्म नंबर 4 पर एक ट्रेन पलटी थी और उसमें कई लोग मारे गए थे। लेकिन उस ट्रेन का कभी कोई पता नहीं चला। लोग मानते हैं कि उन यात्रियों की आत्माएँ अब भी इस प्लेटफॉर्म पर घूमती हैं, इंतजार करती हैं उस ट्रेन का।
क्या यह केवल एक अफवाह थी? या वाकई प्लेटफॉर्म नंबर 4 पर कुछ अजीब है?
यह घटना रवि के मन में हमेशा के लिए एक सवाल छोड़ गई। वह रात में अकेले कभी भी प्लेटफॉर्म नंबर 4 पर जाने की हिम्मत नहीं जुटा सका।
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